किडनी के कई रोगों के निदान के लिए किडनी बायोप्सी - कर्मा आयुर्वेदा


भारत में पिछले 15 सालों में किडनी रोगों में दोगुना वृद्धि हुई है। आजकल की बिगड़ती लाइफस्टाइल और गलत खान-पान इसकी सबसे बड़ी वजह है। शरीर से अपशिष्ट पदार्थो को बाहर निकालने की जिम्मेदारी किडनी की है और किडनी को साफ रखने की जिम्मेदारी हमारी होती है।
कर्मा आयुर्वेदा दिल्ली का प्रसिद्ध आयुर्वेदिक किडनी उपचार केंद्र हैजो सन् 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था

हम रोज प्राकृतिक तरीकों को अपनाकर किडनी को स्वस्थ रखना बेहद जरूरी होता है। किडनी शरीर से बेकार चीजों को बाहर निकालने के लिए किडनी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। साथ ही किडनी शरीर से इलेक्ट्रोलाइट्स को संतुलित रखती है और हार्मोन बनने की प्रक्रिया में भी मदद करती है। किडनी शरीर में सीने की हड्डियों के नीचे रीढ़ के दोनों ओर दो छोटे से अंग है। वैसे अधिकतर अच्छा आहार लेने और पर्याप्त पानी पीने से आपकी किडनी ठीक रहती है। स्वस्थ किडनी रक्त को साफ करती है और बेकार पदार्थों को यूरिन के जरिए शरीर से बाहर निकालती है। अगर किडनी अपने इन कार्य को सही से न करें, तो शरीर में कई समस्याएं पैदा हो सकती है जैसे किडनी स्टोन, इंफेक्शन, सिस्ट, ट्यूमर आदि होना और तब किडनी अपना काम करना बंद कर देती है। साथ ही किडनी बायोप्सी टेस्ट के जरिए किडनी कितनी खराब हो चुकी है, इस बात का पता लगाया जा जाता है। 

किडनी की जांच किसे करवानी चाहिए?
किसी भी व्यक्ति को किडनी की बीमारी हो सकती है, लेकिन निम्नलिखित उपस्थित हो, तो खतरा अधिक बढ़ सकता है।
·         किडनी रोगो के प्रत्यक्ष लक्षण दिखाई देना
·         डायबिटीज होना
·         रक्त का दबाव अनियंत्रित रहना
·         परिवार में वंशानुगत किडनी रोग होना
·         लंबे समय तक दर्द निवारक दवाईयां ली गई हों
·         तंबाकू का सेवन, मोटापा होना या 60 वर्ष से अधिक आयु का होना
·         मूत्रमार्ग में जन्म से ही खराबी होना
 
अगर व्यक्तियों में किडनी की बीमारियों के लिए उचित जांच की जाए, तो यह किडनी के रोगों का निदान रोग के शुरूआत में ही हो सकता है और यह किडनी के रोगों का अधिक अच्छा इलाज करने में सहायक हो सकता है। शुरूआती स्टेजों में सी.के.डी. यानी क्रोनिक किडनी डिजीज में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। रक्त और पेशाब की जांचों से ही इसका पता लगाया जा सकता है।

किडनी की बायोप्सी क्या है? -
किडनी की बायोप्सी एक महत्वपूर्ण जांच है, जिसमें किडनी के कुछ रोगों के निदान के लिए इस्तेमाल किया जाता है। किडनी का अल्ट्रासाउंड एक सरल और सुरक्षित जांच है, जो कि किडनी के आकार और स्थान का आंकलन करने के लिए किया जाता है। किडनी के अनेक रोगों की वजह से जानने के लिए सुई की मदद से किडनी में से पतवे डोरे जैसा टुकड़ा निकालकर और माइक्रोस्कोप से उसका हीस्टोपैथोलॉजीकल (Histopathological) जांच करने को किडनी बायोप्सी कहते हैं।
किडनी बायोप्सी की सलाह कब देनी चाहिए?
किडनी के बहुत से रोगों में विस्तृत पूछताछ, शारीरिक जांच और साधारण जांच आदि भी रोगों के उचित निदान करने में असमर्थ हो जाते हैं। किडनी बायोप्सी के द्वारा दो अतिरिक्त जानकारी प्राप्त होती है, वो सही निदान करने में मददगार हो सकती है।

कैसे मददगार होती है किडनी बायोप्सी?
किडनी बायोप्सी से कुछ अस्पष्ट किडनी डिजीज की पहचान की जा सकती है। इस जानकारी के साथ नेफ्रोलॉजिस्ट, उपचार के लिए प्रभावी उपाय तैयार करने में सक्षम होता है। वह मरीज और उसके परिवार को बीमारी की गंभीरता और प्रकार से भी अवगत कर सकता है।
    
किडनी बायोप्सी करने की तकनीक इस्तेमाल –
किडनी की बायोप्सी का सबसे आम तरीके से एक सुई के जरिए होती है। इसमें एक खोखली सुई, त्वचा से होती हुई किडनी में डाल दी जाती है और किडनी का एक छोटा टुकड़ा निकाल लिया जाता है। एक और बेहद कम इस्तेमाल की जाने वाली विधि है, जिसे खुली बायोप्सी कहते हैं। इसमें सर्जरी की आवश्यकता होती है और इसे ऑपरेशन कक्ष में ही किया जाता है।

किस प्रकार होती है किडनी की बायोप्सी?
·         किडनी बायोप्सी के लिए मरीज को अस्पताल में भर्ती किया जाता है और उसकी सहमति ली जाती है।
·         किडनी की बायोप्सी के पहले सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि, रक्तचाप और रक्त में थक्का बनने की क्रिया सामान्य है या नहीं।
·         खून को पतला करने वाली दवा जैसे एस्पीरीन आदि बायोप्सी करने के दो सप्ताह पूर्व बन्द करना जरूरी है।

·         किडनी के कई रोगों के निदान के लिए किडनी की बायोप्सी अतिआवश्यक जांच है।
·         किडनी की स्थिति का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड या सी.टी. स्कैन किया जाता है।
·         जिससे किडनी की बायोप्सी के लिए सही जगह निर्धारित की जा सकती है, जहां से सुई डाली जा सके। यह जांच रोगियों को बिना बेहोश किए किया जा सकता है, लेकिन छोटे बच्चों में बायोप्सी बेहोश करने के बाद की जाती है।

·         बायोप्सी के समय मरीज को पेट के बल लिटाकर पेट के नीचे तकिया रखा जाता है। बायोप्सी करने के लिए पीठ में निश्चित जगह, सोनोग्राफी की मदद से तय की जाती है। पीठ में पसली के नीचे, कमर के स्नायु के पास बायोप्सी के लिए उपयुक्त स्थान होता है।

·         इस जगह को दवा से साफ करने के बाद दर्दशामक इंजेक्शन देकर सुन्न कर दिया जाता है।
·         अलग-अलग प्रकार की सुई की मदद से किडनी में से पतले धागे जैसे 2 से 3 टुकड़े लेकर उसे हिस्टोपैथोलॉजी जांच के लिए पैथोलॉजिस्ट के पास भेजा जाता है।

·         बायोप्सी करने के बाद मरीज को 2 से 4 सप्ताह तक मेहनत वाला काम नहीं करने की हिदायत की जाती है, लेकिन वजनवाली वस्तु को नहीं उठाने की सलाह दी जाती है।
·         बायोप्सी के समय रक्तस्त्राव को रोकने के लिए बायोप्सी की जगह पर कुछ समय दबाव डाला जाता है। मरीज को अस्पताल में ही आराम करने की सलाह दी जाती है। बहुत से मरीजों को दूसरे दिन घर जाने की अनुमति दे दी जाती है।


किडनी बायोप्सी में होने वाले जोखिम –
किडनी की बायोप्सी के बाद कुछ मरीजों में जटिलताएं देखने को मिलती है। बायोप्सी की जगह पर दर्द होना और एक दो बार लाल रंग का यूरिन आना कोई असाधारण बात नहीं है, यह अपने आप बंद हो जाता है। अधिकतर मामलों में जहां रक्तस्त्राव जारी रहता है, वहां रक्त चढाने की आवश्यकता हो सकती है। बेहद दुर्लभ परिस्थितियों में अगर अनियंत्रित गंभीर रक्तस्त्राव हो रहा हो, तब सर्जरी से किडनी को निकालने की आवश्यकता हो सकती है। साथ ही किडनी के प्राप्त ऊतक जांच के लिए पर्याप्त नहीं होता है। ऐसी परिस्थिति में बायोप्सी कराने की आवश्यकता हो सकती है। किडनी की बायोप्सी एक पतली खोखली सुई के इस्तेमाल से की जाती है, जिसमें मरीज पूरी तरह होश में रहता है।

किडनी रोग में करें कुछ जरूरी परहेज –

·         एनिमिल प्रोटीन - एनिमल प्रोटीन में प्यूरीन मौजूद होता है, जो कि किडनी में यूरिन एसिड में परिवर्तित होने लगते हैं। यह किडनी के लिए नुकसानदेह होता है।

·         सोडियम न लें – सोडियम से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे – डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ, चिप्स, फास्ट फूड, जमे हुए भोजन, प्रसंस्कृत पनीर स्लाइस, नमक, मांस, मसालेदार खाद्य पदार्थ और केचप यह सभी सोडियम सामग्री के साथ पैक खाद्य पदार्थ न लें। इनका अधिक सेवन किडनी को खराब कर सकता है।

·         खाद्य पदार्थ - किडनी रोगियों को खाद्य पदार्थों में से फास्फोरस के सेवन से परहेज करना चाहिए, क्योंकि जिससे कैल्शियम को बनाए रखने मे मदद मिल सकें।

·         पीना की मात्रा – आप अपने डॉक्टर के अनुसार, किडनी की खराबी होने पर पानी कम मात्रा में ही पीना चाहिए तथा आहार में सोडियम, पोटेशियम और फास्फोरस की मात्रा कम होना चाहिए।

·         वसा पदार्थ - घी, तेल मक्खन और चर्बी वाले आहारों का बेहद कम ही सेवन करना चाहिए।

·         धूम्रपान न करें – तंबाकू, धूम्रपान और शराब का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

·         सलाह अनुसार व्यायाम – किडनी की बीमारी से बचने के लिए और किडनी को स्वस्थ रखने के लिए वर्कआउट और व्यायाम करना भी बेहद जरूरी होता है। व्यायाम से कोलेस्ट्रॉल, रक्तचाप और शरीर का वजन कम होता है और इससे आपके कार्य करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। साथ ही इम्यूनिटी भी बढ़ता है, इसलिए हर रोज नियमित रूप से व्यायाम करना बेहद जरूरी होता है।
    
किडनी डिजीज का आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेदिक उपचार किडनी के लिए सबसे अधिक फायदेमंद है। आयुर्वेद में इस्तेमाल की गई जड़ी-बूटियों से किसी भी तरह का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है और किडनी फेल्योर को जड़ से खत्म करने में मदद करता है। आयुर्वेदिक उपचार में पुनर्नवा, शिरिष, गोखरू, कासनी, त्रिफला, पलाश, वरूण, गुदुची और लाइसोरिस रूट आदि जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद में स्वास्थ्य संबंधी हर समस्या का इलाज मौजूद है, जो समस्या से राहत ही नहीं देता, बल्कि समस्याओं से जड़ से निजात दिलाता है।

आयुर्वेद लगभग 5 हजार वर्ष पहले भारत में शुरू हुआ था, जो काफी लंबे समय का विज्ञान है और दुनिया में स्वास्थ्य की देखभाल की सबसे पुरानी प्रणाली है जिसमें औषधि और दर्शन शास्त्र दोनों के गंभीर विचार शामिल है। आयुर्वेद ने दुनिया भर की मानव जाति का संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक विकास किया है। यह चिकित्सा की अनुपम और अभिन्न शाखा है। साथ ही यह प्रणाली आपके शरीर का सही संतुलन प्राप्त के लिए वात, पित्त और कफ का नियंत्रित करने पर निर्भर करती है।

भारत में किडनी का उपचार के लिए कर्मा आयुर्वेदा प्रसिद्ध आयुर्वेदिक किडनी उपचार केंद्र है, जो सन् 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इसका नेतृत्व डॉ. पुनीत धवन कर रहे हैं। कर्मा आयुर्वेदा एशिया के सभी जाने-माने आयुर्वेदिक अस्पतालों में शामिल है। साथ ही देश-विदेश से आए हजारों किडनी रोगियों को डाइट चार्ट की सलाह भी दी जाती है। डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके उन्हें गंभीर किडनी रोग से मुक्त किया है वो भी बिना डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के।


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